गोबर का गोला एक प्राचीन भारतीय विधि है, जिसका उपयोग युगों से खेत में खाद के रूप में किया जाता है। यह सरल प्रक्रिया है जिसमें चप्पल को चपटा रूप में website संघनित करके धूप में सुखाया जाता है। इस न केवल मिट्टी को सामग्री से समृद्ध करती है, बल्कि खुशबू को भी कम है, क्योंकि चप्पल की तीव्रता गंध धूप में घट जाती है। इसके के अलावा, गोबर की गोटिया जीव और बीमारियों से खेतों को रक्षित करने में भी मदद करता है।
गोबर की सिल्ली
गोबर की कंडी एक पुराने ग्रामीण क्षेत्र में मिलने वाले ईंधन का एक अनूठा स्रोत है। यह अक्सर गाय के गोबर से बनाया जाता है, जिसे सुखाया कर और कुचल कर कंडी के आकार में काया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, यह अक्सर खाना पकाने और रोशनी के लिए इस्तेमाल होता है, खासकर तब जब ईंधन दुर्लभ हो। इसकी खुशबू कुछ के लिए अस्वीकार्य हो सकती है, लेकिन यह स्थानीय समुदायों के लिए आवश्यक संसाधन बना हुआ है। इसके अतिरिक्त यह गोबर के उचित निपटान में मदद करता है, पर्यावरण के लिए फायदेमंद है।
गोबर से बने उपले
ग्रामीण संस्कृति में गोबर द्वारा निर्मित उपले एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये न केवल ठंड से सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि इनका उपयोग ईंधन के रूप में भी किया जाता है। गोबर की गेंदें बनाने की प्रक्रिया एक शिल्प है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित जाती है। विभिन्न स्थानों में, उपलों के आकार और गुणवत्ता में भिन्नता पाई जाती है, जो स्थानीय गोबर की उपलब्धता और मौसम पर निर्भर करती है। इनका उपयोग पुराने दिनों से शीत सुरक्षा के लिए किया जाता रहा है और ये अभी भी कई घरों में एक आवश्यक वस्तु हैं।
गोबर की सिल्ली
उत्पत्ति की गोपाल भारत में सदियों से ज्ञात है और इसका उपयोग अनेक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह खेती में एक उत्कृष्ट जैविक उर्वरक के रूप में उपयोगी है, जो मिट्टी को पोषक तत्वों से पूरक करता है और अनाज की वृद्धि को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त गोबर की सिल्ली का उपयोग पूजा-अर्चना में भी गंभीरता से किया जाता है, क्योंकि इसे ईश्वर का अंश माना जाता है। कुछ क्षेत्रों में, इसका उपयोग ऊर्जा के रूप में भी किया जाता है, खासकर देहाती इलाकों में। इसके अर्थ को देखते हुए, गोबर की सिल्ली एक कीमती संसाधन है।
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पशुओं का गोबर की पटेली
गाय का गोबर की पट्टी सदियों से भारत में एक अनमोल वस्तु रही है। यह केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि अब शहरी सभ्य जीवन में भी इसका महत्व बढ़ रहा है। रीति-रिवाजों के अनुसार, गोबर की पटेली का उपयोग निवास स्थान को परिचित रखने के लिए किया जाता था, और इसे खतरनाक कीड़ों से बचाने का एक अनूठा तरीका माना जाता था। अब, इसके अनेक प्रयोगों पर वैज्ञानिक भी ध्यान दे रहे हैं, जैसे कि हरित खाद बनाना और पर्यावरण को सुरक्षित करना। इसके अतिरिक्त, कुछ लोग इसे सौंदर्यपूर्ण वस्तु बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं, जो एक असाधारण विचार है।
गोবর की भूरी
गोबर की चक्की एक अनोखा ईंधन स्रोत है, जो खासकर देहाती क्षेत्रों में काफी प्रचलित है। यह पशुधन के ठोस अपशिष्ट से निर्मित होती है, जिसे सुखाकर और आकार देकर भूरी के रूप में तैयार किया जाता है। ये न केवल उचित होते हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी हैं, क्योंकि ये नवीकरणीय संसाधन से बनाए जाते हैं और इनके जलने से अपेक्षाकृत कम प्रदूषण होता है। कई पुरानी घरों में, गोबर की बट्टी का उपयोग रोशनी के लिए किया जाता है, खासकर तब जब बिजली की सुविधा उपलब्ध न होती हो। साथ ही यह छोटे व्यवसायियों के लिए भी एक ज़रूरी आय का स्रोत हो सकता है, जो इसकी बनावट और बिक्री करते हैं।